परियोजना बेअसर,नहरों की सिल्ट सफाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति।

कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने व सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरयू नहर परियोजना का आरंभ किया गया। फिर भी सिंचाई के लिए किसानों के लिए परियोजना का लाभ मुकम्मल नहीं मिल रहा है। अब ऐसे मे य़ह किसान जाए तो किसके पास जाए कहीं किसानों की उपजाऊ जमीन बंजर होती जा रहीं है, तो कहीं किसान को पानी के अहत मे अपने उपजाऊ जमीन से दूर हो रहा है। पड़ोसी जिला बलरामपुर मे सरयू नहर परियोजना का शुभारंभ देश के प्रधानमंत्री ने किया था,और लाखो, करोड़ों किसानो को बड़ी सौगात दिया था, लेकिन शायद अब काग़ज़ों तक ही सीमित रह रह गया है। महत्वाकांक्षी परियोजना बेकार साबित हो रही है। पूरे वर्ष भर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरयू नहर का निर्माण कार्य शुरू होते ही किसानों के चेहरे पर खुशी की लहर व्याप्त हो गई थी। शायद यही कारण था कि अपनी जमीन देने में किसान आसानी से आगे आए थे। सब्जी और गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त जमीन होने से सिंचाई की सुविधा मिलने से किसानों को लाभ मिलता, नहर निर्माण तो हुआ, पर पानी न आने से किसानों की आशाओं पर पानी फिर रहा है। किसानों को पानी नहीं मिल पा रहा है। वहीं किसानो का साफ़ कहना है कि जब बरसात तेज होती है, तो पानी आता है और सूखे के मौसम में नहर सूखी रहती हैे। फसल काटने का जब समय आता है तब इन नहरों मे पानी छोड़ा जाता है। प्रशासन केवल दिखावा कर रहीं है। अभी भी हम लोग को महंगे डीजल से ही सिंचाई करनी पड़ती है। अलबत्ता नहर के रास्ते छुट्टा पशुओं के आने से खेतों की रखवाली बढ़ गई है। सिंचाई की सुविधा न होने से क्षेत्र के किसानों के लिए सब्जी और गन्ने की खेती करना महंगा साबित हो रहा है। वहीं सिंचाई विभाग के अधिकारियों के लिए तो यह परियोजना कामधेनु बन गई है, लेकिन प्रभावित जिलों के किसानों के लिए स्थायी मुसीबत से कम नहीं है। योजना के तहत घाघरा, सरयू और राप्ती नदियों के पानी से गोंडा सहित श्रावस्ती, सिद्धार्थ नगर, बहराइच, बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर और गोरखपुर जिलों के कुछ कमों बेस बारह लाख हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होनी थी, जो आज सरकारी काग़ज़ों मे ही सिमट कर रह गयी है। वहीं नहर को लेकर किसान ने अपने हिस्से से जमीन तो दे दिया लेकिन आज वो किसान खुद परेशान है। 12 दिसंबर 2022 से नहरों में पानी छोड़ा जाना है, इससे पहले सिल्ट सफाई का काम हो जाना था, लेकिन समय सीमा भी समाप्त होने के कगार आ गयी, और आज भी सिल्ट सफाई नहीं हो सका नहरों में कई स्थानों पर सिल्ट सफाई नहीं की गई, बल्कि पुलिया के नीचे सिल्ट जमा दिखा नहर अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे, बड़ी और छोटी नहर के कुलाबे, कागजों पर हो गई सिल्ट सफाई,सरयू की बड़ी और छोटी नहर के कुलाबों में जमा सिल्ट सफाई का कार्य सरकारी काग़ज़ों तक सीमित, हालत जस की तस बनी हुई है। कोलाबों में जमा सिल्ट और खड़ी झाड़ियां किसानों को मुंह चिढ़ा रहीं हैं,किसानों की गेहूं, गन्ना, लाही, मसूर की फसलें सूख रहीं हैं। इससे किसानों की सांसे हलक में अटकी हुई हैं। बिजली और डीजल की आसमान छूती कीमतों के कारण किसान ट्यूबवेल और पंपिग सेट से फसलों की सिंचाईं करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं।



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