तिल-तिल बढ़ता यहां का विशाल चमत्कारी शिवलिंग।

वाराणसी को अति प्राचीन शहर आध्यात्मिक नगरी कहा जाता है। भगवान शंकर के त्रिशुल पे बसा ये काशी जहा अनेको, अनेक प्राचीन मंदिर है। उसी काशी में बाबा विश्वनाथ दरबार से महेज दो किलो मीटर की दूरी पर पांडेय हवेली स्थित एक ऐसा रहस्यमई प्राचीन मंदिर तिलभांडेश्वर महादेव का है। जिसकी कहानी लगभग दो हजार वर्ष पुरानी है जो आज भी हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन एक तिल के समान आकार में बढ़ता है। भोलेनाथ के इस अनोखे और चमत्कारिक धाम के पीछे एक कहानी है कहा जाता है कि दो हजार वर्ष पहले दक्षिण भारत के ऋषि विभांडक यहां आए और वह प्रतिदिन एक तिल बढ़ते शिवलिंग को देखकर आश्चर्य चकित हो गाए और वह काशी विश्वनाथ जाने के जगह उन्होने यही रुककर वर्षो साधना की जिसके बाद तिल तिल बढ़ते शिवलिंग और ऋषि के नाम को मिलाकर इनका नामकरण तिलभांडेश्वर किया गया। मान्यताओं के मुताबिक,काशी के इस अद्भुत शिवलिंग की आकृति हर दिन एक तिल बढ़ती है। शिव पुराण में भी इसका जिक्र है। भक्तों का ऐसा मानना है कि सावन में यहां बाबा को बेलपत्र, धतूरा, भांग और जल अर्पण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। प्राचीन इतिहास के अनुसार जब औरंगजेब काशी आया तो उसने यहा के मंदिरों के बारे में परीक्षा लेनी चाही की इनके पत्थरों में शक्ति है या नही | औरंगजेब ने अपने सैनिकों को मंदिर ध्वस्त करने की नीयत से तिलभांडेश्वर महादेव के इस मंदिर भेजा। सैनिकों ने शिवलिंग पर जैसे ही तलवार चलाया उसमें से रक्त की धारा बहने लगी। इस अद्भुत चमत्कार को देख कर औरंगजेब के सैनिक यहां से भाग गए। आपको बता दें जमीन से लगभग 32, मीटर ऊंचाई पर स्थित इस शिवलिंग के दर्शन को दूर-दूर से श्रद्धालू आते हैं। काशी का ये शिवलिंग स्वयंभू है। सावन के महीने के अलावा प्रत्येक सोमवार को भी यहां भक्तों की भीड़ होती है। महाशिवरात्रि पर दोपहर के समय यहां से भव्य शिव बारात भी निकली जाती है। जो काफी प्रसिद्ध है। जिसमें स्थानीय लोगो के साथ ही देश विदेश के लोग भी बाराती के रूप में शामिल होते है।

Post a Comment

0 Comments

About us

Purvanchal tv